माता सुरकंडा मंदिर टिहरी गढ़वाल

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार मान्यता है कि हिमालय मे दक्ष नाम के राजा थे उनकी पुत्री का नाम सती था कहा जाता है कि सती मां पार्वतीका ही ऐक रूप था जो कि राजा दक्ष के घर मे जन्मी थी ।
वो भगवान शिव से बहुत प्रेम करती थी माता सती ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा उनकी घोर तपस्या को देखते हुए भगवान शिव ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया ।
और माता सती और भगवान शिव का विवाह हो गया ।
जो कि राजा दक्ष को मंजूर नहीं था क्योंकि भगवान शिव एक अघोरी थे ।
एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन रखा जिसके लिए देश विदेश के सभी राजाओं को आमंत्रण भेजा लेकिन भगवान शिव को नहीं भेजा जब माता सती ने राजा दक्ष से इसका कारण पूछा तो वे बोले कि तुम्हारा पती कोई राजा नहीं है जो मे उन्हें यज्ञ मे आमन्त्रित करूं वो एक अघोरी है ।
माता सती भगवान शिव के प्रति इस प्रकार के शब्द बर्दाश्त नहीं कर पाई और आवेश मे आकर वहीं यज्ञ कुण्ड मे अग्नि समाधि ले ली ।
भगवान शिव को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने गुस्से मे आकर राजा दक्ष का शिर धड़ से अलग कर दिया और सती माता के जलते हुए शरीर को उठाकर ब्रम्हांड मे घूमने लगे कहा जाता है कि भगवान शिव माता सती के मृत शरीर को लेकर कई बर्षों तक धूमते रहे ।
यह देखकर सब देवता भयभीत हो गये की अगर ऐसा ही चलता रहा तो संसार का क्या होगा ।
तो सब देवता भगवान विष्णु के पास गये भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के पार्थिव शरीर को कई टुकड़ों मे विभाजित कर किया जो कि धरती पर अलग अलग स्थानो पर गिरे जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां वहां शक्तिपीठ बने ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए है ।
इन्हीं शक्तिपीठों मे से एक है ।
उत्तराखंड के टिहरी जिल्ले मे बसा हुआ सुरकंडादेवी शक्तिपीठ कहा जाता है कि स्थान पर माता सती का सर गिरा था इसी लिए यह स्थान सुरकंडा या सरकंडा के नाम से जाना जाता है ।
यह स्थान ऋषिकेश से लगभग 80 km की दूरी पर स्थित है ।
यह मन्दिर टिहरी गढ़वाल मे स्थित सुरकूट पर्वत पर स्थित है ।
कद्दूखाल से लगभग डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढाई चढ़कर माता सुरकंडा के मंदिर के दर्शन होते है ।
यह मंदिर समुद्र तल से लगभलग 9990 फीट की उंचाई पर स्थित है ।
इस मंदिर मे लेखवार जाती के लोग पूजा पाठ करते है जो कि पुजाल्डी गाँव मे निवास करते है ।
सुरकण्डा से पुजाल्डी गाँव पैदल का रास्ता १२ किलोमीटर का है और ये गाँव चम्बा से मसूरी रोड के बिच में स्थित  है ।
मंदिर पुजारी श्री प्रदीप लेखवार जी ने हमे बताया कि मां सुरकण्डा देवी का मायका जरधार गाँव मे है और 
पुजाल्डी गाँव मे ससुराल है ।
जरधार गाँव सुरकण्डा से पैदल का रास्ता है जिसकी दूरी लगभलग १७ किलोमीटर है ।
यहां से ऋषिकेश से चम्बा के बीच में नागणी से जरधार गाँव के लिए जाया जाता है ।
हर तीन साल में माँ सुरकण्डा माता को जरधार गाँव में बुलाया जाता है जिसको स्थानीय भाषा मे  तेसाली यात्रा कहा जाता है ।
तेसाली यात्रा का मतलब होता है तीसरे वर्ष होने वाली यात्रा ।
यह यात्रा चैत्र नवरात्रि मे होती है ।
जब माँ सुरकण्डा की डोली जरधार गाँव जाती है तो उसके साथ में पुजाल्डी गाँव के पुजारी के साथ साथ पूरा जन सैलाब उमड़ता हैं ।
जरधार गाँव के लोग माँ सरकंडा की डोली को अपने सर पे रख के पैदल गाँव के लिए जाते हैं ।
हरियाली कटने तक मां सुरकण्डा की डोली वहीं रहती है ।
उसके बाद माता की डोली को मंदिर मे वापस लाया जाता है ।
धार्मिक स्थल होने के साथ साथ यह स्थान बहुत ही सुंदर और मनमोहन भी है यहां की सुन्दरता देखते ही बनती है यह स्थान देखकर  लगता है जेसे प्रकृति ने अपनी सारी सुन्दरता यहीं बिखेर दी हो ।
यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते है ।
केसै पहुंचे यहां -
देहरादून तक हवाई सफर करके यहां के लिए बस व जीप की सुविधा है ।
यहां यात्रियों के लिए धर्मशालाऐं बनाई गई है
यहां सालभर सर्दी का मौसम रहता है इस लिए अगर आप यहां आऐं तो गर्म कपड़े जरूर लायें ।

जय माँ सुरकण्डा 

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