पौड़ी में बाघ के हमले में महिला की मौत

भगवान सिंह पौड़ी

बाघ के हमले में एक महिला की मौत
पौड़ी :लगातार मौत का पर्याय बनते जा रहे बाघों से आखिर कौन सुरक्षा दिलाएगा! यह एक ऐसा प्रश्न है कि जिसने आज पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रामीणों का जीना मुश्किल कर दिया है। खुलेआम इस तरह से हो रही घटनाओं से शासन-प्रशासन आखिर कोई सबक लेने को तैयार क्यों नहीं है। हर दिन जीना बड़ा मुश्किल होता जा रहा है। गांव में महिलाओं के दैनिक कार्यों में घास लाना. लकड़ी लाना, गाय भैंसों को जंगल चराना में शामिल है यदि वे इन कामों को छोड़कर घर के अंदर बैठ जाएंगी तो उनकी पूरी जीवनशैली समाप्त सी हो जाएगी।
ताजा घटना आज सुबह आठ बजे श्रीनगर गढ़वाल भक्तियाना की है जहां आठ-दस महिलाएं घास लेने जा रही थीं जिन पर घात लगाए बाघ ने हमला कर दिया और उनमें से एक महिला मीनू जिसकी उम्र करीब 38 साल है ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। जंगली जानवरों के लगातार बढ़ रहे हमले कब तक ऐसे ही आम आदमी के जीवन को नर्क बनाती रहेगी।
सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही!
समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल जिन्होंने इससे पहले पौड़ी के पोखडा ब्लाक में बाघ के हमले में घायल हुए बच्ची का मुद्दा उठाया था जिसे बाद में बहादुरी के पुरस्कार के लिए नामित किया गया था ने कहा कि हर बार वही हवा हवाई वाली बातें करके अपना पल्ला झाड़ने की संस्कृति आम आदमी की हिम्मत को तोडने का काम कर रही है। सरकारी तंत्र इसके लिए पूर्णतया जिम्मेदार है। सरकार यदि जल्द इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती है तो एक वृहद आंदोलन किया जाएगा। आम आदमी जाए तो जाए कहां! सड़कों पर चले तो गाड़ियों का भय, जंगल में जाए तो जानवरों का भय! आखिर ऐ हो क्या रहा है। आम आदमी को हर तरह से सुरक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी बनती है। उसे अपना धर्म निभाना ही होगा।

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