निर्माण शैली और वास्तु कला के बेजोड़ नमूने होते थे कभी यह महल अपनी धरोहर-अपना परिवेश

कवि : सोमवारी लाल सकलानी निशांत। 


 टिहरी :  प्रस्तुत जिन खंडहरों की बात मै आज कर रहा हूं, कई बार अपनी पोस्टों, लेख और आलेखों के माध्यम से समाज के सामने लाता रहा हूं। पुन: पुजार गांव  स्थित  मुआफीदारन कोर्ट, जिसके अब ध्वन्षावशेष भीअब उपलब्ध नहीं हैं। दीवान बलिराम जी की हवेली का खंडहर, के  बारे में बात करने जा रहा हूं।

      सत्रहवीं शताब्दी के अंत में जब आचार्य नागदेव शुक्ल जी (सकलानी) को  ब्रह्महोत्र (दक्षिणा)में महाराजा महीपत शाह(श्री नगर ,गढवाल) के द्वारा 64 गांव की जागीर प्राप्त हुई, जिसमें अन्य गांवों के अलावा संपूर्ण सकलाना विद्यमान था, उन्होंने ने पुजार गांव में ही अपना निवास स्थल बनाया।

    तदोपरांत दीवान श्री कीर्तिधर जी ने  पुजार गांव में शिवलिंग की विधिवत स्थापना करके मंदिर का निर्माण कराया,जिसे नागदेव  जी की जांघ से उत्पन्न कहा जाता है। उसी काल खंड में पुजारगांव में मुआफीदारन कोर्ट का निर्माण हुआ जो कि निर्माण शैली और तत्कालीन वास्तुकला का बेजोड़ नमूना था।

       कुछ समय पश्चात बलिराम दीवान  ने अपने रहने के लिए 52 कमरों से युक्त सुंदर सुसज्जित हवेली का निर्माण पुजार गांव से डेढ किलोमीटर की  दूरी पर किया, जो कि आज हवेली गांव के नाम से जाना जाता है और जिस गांव का मैं मूल निवासी हूं।

    श्रुति -अनुश्रुति तथा इतिहास के पन्नों में जैसा वर्णित है, बलिराम दीवान जी एक दिन भी इस बावन वास हवेली में नहीं रहे, जो कि उनके सकलानी बंधु- बांधव के निवास स्थल में बदल गई।

    आज मैं केवल पुजार गांव के मुआफीदारन कोर्ट की बात ही कर रहा हूं, जहां कि कभी दरबार सजता था, सुनवाई होती थी, मुकदमे भी सुने जाते थे। दीवानी, फौजदारी और राजस्व सभी प्रकार के मुकदमों का निस्तारण इस कोर्ट में होता था। सैकड़ों वर्षों तक यह परिपाटी चलती गई, लेकिन बाद के वर्षों में सकलाना के फौजदारी मुकदमों की अपील चीफ कोर्ट टिहरी में होने लगी। दीवानी के मुकदमे सुनने का अधिकार मुआफीदारों के पास रह गया।

   पुजार गांव स्थित इस कोर्ट में समय-समय पर अनेक मुआफीदारों ने जागीरदार के रूप में कार्य किया। मुआफी बंट जाने के बाद भी सीनियर और जूनियर मुआफीदारों ने यद्यपि  श्रीपुर और महेंद्रपुर ( रायपुर, देहरादून के नजदीक) अपने निवास स्थल बनाये किन्तु  दरबार इसी स्थानीय कोर्ट में लगता था। इस  कोर्ट की गरिमा कभी कम नहीं हुई। अंतिम मुआफीदार स्व. राजीव नयन सकलानी और गजेंद्र दत्त सकलानी ने भी कुछ समय तक यहां राज किया।

   देश की आजादी के बाद जब सकलाना आजाद पंचायत की स्थापना हुई और मुआफीदारों ने प्रजामंडल के सम्मुख सरेंडर कर दिया, जागीर के विलय की घोषणा कर दी। मुआफीदारों ने अपनी सुविधा के अनुसार अपने अलग-अलग स्थानों में आशियाने बनाए जो कि आज भी विद्यमान हैं।

     पुजार गांव  स्थित यह कोर्ट दशकों तक सकलाना की शान रहा। यह राजकीय चिकित्सालय के भवन के रूप में भी रहा। मेरी याददाश्त में इस भवन में रहने वाले राजकीय चिकित्सालय के अनेक डॉक्टर भी यहां निवासरत रहे हैं।

     80 के दशक में डॉक्टर चौरसिया (एमबीबीएस) जो कि अपने समय के एक नामी गिरामी डॉक्टर थे, इस भवन की ऊपरी मंजिल में निवासरत रहे।सन 1972-73 में अनेकों बार डॉक्टर चौरसिया को लेने और छोड़ने के लिए मैं उनके निवास स्थान पर आता रहता था। इससे पूर्व डॉ गुप्ता भी एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर  यहां पर कार्यरत रहे।इस भवन के अंतिम  वारिश  प्रोफेसर आलोक सकलानी हैं और आज भी यह भूमि उनके नाम अभिलेखों में दर्ज है।

    विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी जब तक जीवित रहे, तब तक इस भवन का की देखरेख  करते रहे लेकिन बाद में भवन अस्तित्व विहीन हो गया। किसी समय तराशे गए पत्थरों, साज सज्जा के रूप में कटवा पत्थरों से बने हुए हाथियों, अनेक प्रकार की साज सज्जा से सुसज्जित यह दो मंजिला  कोर्ट/ भवन आज धराशाई हो चुका है,। विस्तृत लान, उस पर बिछे हुए स्थानीय पत्थर, ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए गर्भ सीढियां, शौचालय की व्यवस्था खुला बरामदा और अनिल को सुसज्जित कमरों से युक्त यह भवन था, जो कि सकलाना शान माना जाता था। चारों ओर से खुला हुआ स्थान, भवन के पश्चिम की ओर जंघेश्वर महादेव जी का मंदिर,सकलानी और तिवारी वंशजों के की पितृ कुड़ी, दक्षिण भाग में बहती हुई सदानीरा सौंग नदी, सकलाना का ज्ञान केंद्र सत्यौं और सुरम्य घाटी, प्राकृतिक जल स्रोत, समीप  सदा शिवसदा मंदिर के ऊपर विस्तृत देवदार का जंगल और सर्वोच्च शिखर पटाला(ट्री टाप) इस भवन की शोभा बढाता था लेकिन आज कहीं गस महल  /भवन/धरोहर का नामोनिशान भी नहीं है। आवश्यकता थी कि इस ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए  रखा जाता जो आने वाली पीढ़ी के लिए शोध का विषय भी होता।  दुर्भाग्य की बात है कि भौतिकवाद की अंधी दौड़ में लोग इतने मशगूर हो गए कि अपनी धरोहरों को भी संचित नहीं रख सके।

    (यह साहित्यक लेख है जिसे ऐतिहासिक स्वरूप दिया गया है। किसी विस्तृत शोध पर आधारित नहीं है)

    कवि :सोमवारी लाल सकलानी, निशांत। 

         (कवि कुटीर )

   सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हाइड्रो इंजिनियरिंग कॉलेज टिहरी को आईआईटी रुड़की का हिल कैंपस बनाने मे भाजपा नेताओं की आपसी लड़ाई से हो रहा अनावश्यक विलंब

जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने लिया कड़ा एक्शन : लापरवाही बरतने पर अध्यापक जयवीर सिंह निलंबित

सरस्वती विद्या मंदिर नई टिहरी के बच्चों ने बोर्ड परीक्षा मे बढ़ाया विद्यालय का मान