लाल किले के प्राचीर पर : कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत


बज उठी दुंदभी रणभेरी -शहनाई - ताल  मृदंग बजा ।

लाल किले की प्राचीर पर स्वाभिमान का ध्वज फहरा।

गणतंत्र की मादक बेला पर, हर प्रांगण हर क्षेत्र सजा।

और मेरे हृदय आनन में, खुशियों का इक दीप जला । 


कहीं परेड प्रभात - फेरीयां, कहीं झांकियां साज सजे।

कहीं नृत्य-  संगीत मनोहर कहीं शौर्य की बिगुल बजे।

कहीं खेल - उत्सव अर मेले ,रैली परेड जनसमूह चले। 

छब्बीस जनवरी के पावनपर्व पर मेरे मन में दीप जले। 


कदमताल से हिंद जवां के ,धरती अंबर तल कांप उठे ।

सैन्य - शक्ति के प्रदर्शन से ,असुरक्षा के सब भाव मिटे।

वायुयान मिसाइल टैंक व तोपे, सुंदरता के पर निखरे ।

मातृभूमि के चप्पे-चप्पे पर ,स्वर्ण धूलि अरु फूल खिले । 


लोकतंत्र के इस मधुबसंत में ,नवपल्लव के तरु विकसे।

श्वेत - स्फटिक - ज्योत्सना में उत्तरांचल की हिम शिखरें।

आल्हादित कवि निशांत राग में ,चली  हृदय अमृत भरने।

महान राष्ट्र गौरव गाथा का ,त्याग -बलिदान अमर करने । 


स्वाभिमान की सत्य सिंधु में ,लहरें लगी हलचल करने ।

स्थिर राष्ट्र ने कुचल दिया, आतंकी  छायाएं लगी मरने ।

वीरभूमि के इस राष्ट्र में ,लग गए असहाय अपंग भगने ।

और आज गणतंत्र दिवस पर ,श्रद्धा सुमन अर्पित करने । 


कैदी - जन भी जेलों में ,लग गए प्रार्थना अब सब करने।

मातृभूमि की अभिरक्षा खातिर , लगे देखने वे मधु सपने।

सतरंगी छटा संस्कृति जब निखरी,लगने लगे सभीअपने।

मर मिटने को मातृ भूमि पर, सिर बांधें कफन ली कसमें । 


बज उठी दुंधवी  - रणभेरी - शहनाई ताल मृदंग बजा ।

लाल किले की प्राचीर पर स्वाभिमान का ध्वज फहरा।। 


( कवि कुटीर)सुमन कॉलोनी चंबा ,टेहरी गढ़वाल।

        ( स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर )

    नगर पालिका परिषद चंबा, टिहरी गढ़वाल

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