कवि सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर, न.पा.परि.चंबा(टि.ग.)
एक हमारा- एक आपका,
यह दोनों ही तो जंगल हैं।
आंख खोलकर देखो बंदों,
हम तुम कैसे वन में रहते हैं?
मेरे वन में बुरांस खिले हैं,
तुम्हारे वन में कूड़ा के ढ़ेर!
राजपुष्प हंसता मेरे वन में,
रोता कानन तुम्हारे वनदेश।
स्वच्छ हरित षुष्पित मेरा वन,
तुम्हारा जंगल में पालीथीन !
भौतिकवादियों आंखें खोलो,
कहां खड़े हो कुछ तो बोलो ?
एक हमारा- एक आपका ,
दोनों ही तो जंगल ही हैं।
मेरे वन में सुंदरता पसरी,
तुम्हारा जंगल कूड़ाघर है।
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