27, 28 अप्रैल को होगा अमर शहीद नागेंद्र सकलानी का थौलू (मेला)
कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
टिहरी : 27/28 अप्रैल (15 गते बैसाख) क्रांतिवीर अमर शहीद नागेंद्र सकलानी का थौलू(मेला) सत्यौं (इंटर कालेज पुजार गांव प्रांगण) में आयोजित किया जाएगा।
सन 1948 से स्वर्गीय नागेंद्र सकलानी के नाम पर यह मेला आयोजित किया जाता रहा है। इस वर्ष खास बात यह है कि यह राजकीय बहुउद्देश्यीय मेला घोषित किया गया है। विधिवत 1 सप्ताह पूर्व 21 अप्रैल 2022 को शासनादेश निर्गत हो चुका है। इसके लिए अमर शहीद नागेंद्र सकलानी मेला समिति के अध्यक्ष, सचिव सहित संपूर्ण कार्यकारिणी को हार्दिक बधाई।
सकलाना वासियों की लंबे समय से चली आ रही यह मांग भी पूरी हुई है। इससे पूर्व राजकीय इंटर कॉलेज पुजार गांव का नाम अमर शहीद नागेंद्र सकलानी अटल आदर्श राजकीय इंटर कॉलेज पुजार गांव हो चुका है यह भी गौरव की बात है। अभी कुछ समय बाद सकलाना में उनके नाम से महाविद्यालय भी स्थापित हो जाएगा। मेरा मानना है कि किसी भी कार्य को होने में समय तो लगता ही है। क्रांति भूमि सकलाना की यह विशेषता रही है कि वह जिस मिशन के पीछे लगते हैं उसे पूर्ण करवा कर ही चैन लेते हैं। यह इच्छाशक्ति का परिचायक है।
27 अप्रैल 2022 को अपराह्न राजकीय बहुउद्देश्यीय अमर शहीद नागेंद्र सकलानी मेले का उद्घाटन होगा। जिसमें सूबे के पूर्व मान. शहरी विकास मंत्री तथा वर्तमान माननीय विधायक धनोल्टी श्री प्रीतम पंवार मुख्य अतिथि के रुप में सम्मिलित होंगे और अपने ही सकलाना के पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री) श्री संजय नेगी विशिष्ट अतिथि के रूप में मेले में सम्मिलित होंगे।
सकलाना के अनेकों गणमान्य और लब्ध प्रतिष्ठित जनप्रतिनिधि, विचारक, राजनेता और सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए व्यक्ति भी इस मेले में शिरकत करेंगे और प्रथम बहुउद्देशीय राजकीय मेला के साक्षी बनेंगे।
आधा शताब्दी से भी ज्यादा समय पूर्व जब मैं 70 के दशक में नागेंद्र सकलानी के थौल में जाता था तो दो बातें मुझे बहुत प्रभावित करती थी। एक तो जगतनदास जी का गीत,
"हौर चलाला गोली बारूद, हम चलौला बम/
देश की सेवा हम कराला नी छौं कैसी कम"।
सि
लाठी पर दो घुंगरू बांध कर और छम- छम नाचते हुए जब वह गीत सुनाते थे तो बड़ा गौरव महसूस होता था। मैं उस समय 8 /10 वर्ष का था और उनका गीत बहुत प्रभावित करता था। दूसरा धर्म सिंह नकोटी जी का 'लाटरी का खेल' एक चादर के ऊपर साबुन की टिकिया, सिगरेट की डिब्बी, बिस्कुट का पैकेट, बीड़ी का बंडल, आदि आइटम सजाई रहती थी और सबसे महत्वपूर्ण था बीच में रखा ₹5 का नोट। पांच पैसे में एक रिंग डाली जाती थी। बाद के वर्षों में उन्होंने रिंग का किराया 10 पैसे कर लिया था लेकिन शायद ही किसी का वह ₹5 का नोट पर निशाना लगा हो।
पिताजी चवन्नी मुझे और चवन्नी मेरे चचेरे भाई को मेला देखने के लिए देते थे और आठ- आठ आना मां और चाची को मिलता था। उसी में जलेबी, कलाकंद, लड्डू, आलू की पकौड़ी, गुब्बारे, बंसी, बाजा आदि खरीदने के लिए चुनाव करना पड़ता था। मां और चाची को ऊन्ही अठन्नियों में चूड़ी, बिंदी, फोंदा, सुरमा तथा घर के लिए कुछ सामग्री लानी होती थी। चयन करना बड़ा मुश्किल हो जाता था। हमारे गांव के नाते के दादा लगते हैं वह मेरठ या दिल्ली में नौकरी करते थे। वह अपनी पत्नी को दो रुपैया मेला देखने के लिए देते थे जो कि एक बहुत बड़ी रकम मानी चाहती थी और मां और चाची जलेबी आदि खाने के लिए अक्सर उन्ही के पीछे लग जाती थी।
समय ने करवट बदली। देश काल और परिस्थितियों में अंतर आया। लेकिन अमर शहीद नागेंद्र सकलानी का थौलू( मेला) नए कलेवर में समाज के सामने आया है। अब राजकीय मेला घोषित होने के कारण अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मेला आयोजन समिति, जिसके ऊपर मेला संपन्न कराने का सबसे बड़ा दारोमदार होता है, मैं उन्हें अग्रिम शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं कि निर्विघ्नं निर्विवाद मेला संपन्न हो इसके लिए ईष्टदेव सदाशिव जी, क्षेत्रपाल देवता और मां सुरकंडा से प्रार्थना करता हूं ।
यह राजकीय बहुउद्देश्यीय मेला है। जैसे कि होता ही है कुछ नया- लोगों को देखने को मिलेगा। सरकारी स्टाल लगेंगे। कुछ सरकारी औपचारिकताएं भी पूरी होंगी लेकिन मेला पर्व और त्योहारों के बहाने हम कुछ न कुछ नया सीख जाते हैं। यह भी बड़ी बात है।
आज मैं अमर शहीद नागेंद्र सकलानी के बारे में, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर बात नहीं कर रहा हूं बल्कि अपने क्षेत्र के इस स्थानीय मे ले के बारे में ही बातचीत करना उपयोगी समझता हूं जो कि हमारे जीवन में एक अनुभव, शिक्षा, आनंद, मेल -मिलाप और भाईचारे का स्रोत है।
महान पुरुषों के बहाने जब हम एकत्रित होते हैं तो बहुत बड़ा सुकून महसूस होता है। कहीं पुराने बिछड़े मित्र, पुराने साथी मेले में मिलते हैं और हार्दिक प्रसन्नता होती है।
पुराने और नए मेलों में काफी अंतर आया है। शिक्षा के प्रसार और प्रचार के कारण भले ही आज औपचारिकताएं ज्यादा बढ़ गई हैं लेकिन अब पुराने समय की तरह झगड़ा- फसाद आदि नहीं होता है। पांच दशक पूर्व मेले और त्यौहार रंजिस का केंद्र भी बन गए थे जो कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार के द्वारा समाप्त हो चुका है।
अब समाज के पढ़े-लिखे लोग,जनप्रतिनिधि, सामाजिक सरोकारों से वास्ता रखने वाले, लोक कलाकार और संस्कृति को जिंदा रखने वाले लोग भी मेले में शिरकत कर करते हैं। लोगों का स्वस्थ्य मनोरंजन भी करते हैं। इस बहाने अनेकों चर्चाएं भी हो जाती हैं। और क्षेत्रीय विकास का द्वार भी खुल जाता है।
क्रांति भूमि सकलाना की पावन माटी सदैव संस्कृति का केंद्र रहा है। छात्र जीवन से शिक्षक के रूप में और स्थानीय निवासी होने के नाते मेरा सत्यौं (इंटर कालेज पुजार गांव) से भावनात्मक लगाव रहा है जो अंतिम क्षण तक भी बरकरार रहेगा। ईश्वर मनोकामना पूर्ण करें।
27-28 अप्रैल को मेला संपन्न होने के बाद रिपोर्ट आपके सामने प्रस्तुत करूंगा। विस्तृत व्यौरा आपके सम्मुख रखूंगा। आज फिलहाल इतना ही। मेला समिति का आमंत्रण के लिए धन्यवाद।
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