खतरे की घंटी : कहीं इस झमाझम मूसलाधार बरसात में आवाज न दे जाये,ये बीमार सरकारी स्कूल
Team uklive
रिखणीखाल : सरकारी लापरवाही का आलम देखना है तो इस खबर को ध्यान से पढ़िये और शेयर भी करते जायें ताकि कुंभकर्णी नींद में सोये शासन प्रशासन की निद्रा टूट जाये और किसी अप्रिय घटना व अनहोनी को टाला जा सके।
हम बात कर रहे हैं प्रदेश के अग्रणी जनपद गढ़वाल के रिखणीखाल प्रखंड के राजकीय प्राथमिक विद्यालय द्वारी तथा वहीं पर स्थित राजकीय इन्टर कॉलेज द्वारी के स्कूलों की जीर्ण-शीर्ण भवनों की,जो कभी भी इस बरसात में आवाज दे सकते हैं कि हम धराशायी हो गये हैं।जिसने अपने नौनिहालों की जान बचानी है तो बचा लो,फिर संभलने का मौका नहीं मिलेगा।
हैरानी की बात है कि न जाने इन जर्जर भवनों के मरम्मत व रखरखाव को कयी बार शिक्षा विभाग आदि को अवगत कराया गया है,लेकिन सरकारी सिस्टम को इससे कोई सरोकार नहीं है।अब डर सता रहा है कि ये भवन कब दम तोड़ दें।
राजकीय प्राथमिक विद्यालय द्वारी की स्थापना सन 1935 में हुई लेकिन यह भवन सन 1956 का निर्मित है।विद्यालय में 30-35 छात्र छात्राये अभी भी पढ़ते हैं यह संख्या धीरे धीरे सिमटती जा रही है।मुख्य कारण है कि अभिभावको को रोजगार,स्वरोजगार,सुस्त स्वास्थ्य व्यवस्था,कमजोर शिक्षा,अन्य मूलभूत सुविधाएं नहीं है।कुछ तो एक दूसरे की देखा देखी से भी पलायन हो रहे हैं।इसके आसपास के गाँवो के स्कूल में भी छात्रों की संख्या कम होती जा रही है।इनमें ये गाँव शामिल है,नावेतल्ली,इन्दिरा कॉलोनी,सेरोगाढ आदि है।टूटे फूटे स्कूल भी एक मुख्य कारण हैं।इस विद्यालय की दीवार,टिन के छत बुरी तरह लीक हो रहे हैं।यदा-कदा न चाहते हुए भी बच्चों की छुट्टी करनी पड़ती है।भवन का पलस्तर झड़ जा रहा है।
अब बारी आती है राजकीय इन्टर कॉलेज द्वारी जो इसी स्कूल के 100 मीटर की दूरी पर स्थित है।इस कॉलेज के मुख्य भवन के अलावा जो अतिरिक्त भवन व कमरे बने हैं जो तालाब की शक्ल में नजर आते हैं इनकी भी छत टपकती है,बरसात में प्लास्टिक पन्नी डालकर पठन-पाठन होता है।ये भवन ज्यादा पुराने नहीं है लेकिन स्थानीय व सिखलावटी ठेकेदार द्वारा बनाये गये है।ये पन्द्रह साल पुराने भवन हैं लेकिन भवन सामाग्री घटिया होना व सही देखभाल न होने से समय से पहले ही टूट रहे है।छत का लेन्टर भी समतल नही है बीच में गहरा होने के कारण मछली तालाब का नज़ारा जैसा लगता है।इस मानसून सीजन में टपकता है तथा किताबें भीग जाती हैं।सर्दियों में बाहर ऑगन में पढते हैं।ज्यादा बरसात होने पर छात्र स्वयं ही नहीं आते या आपातकालीन छुट्टी हो जाती है।खैर यहाँ बडे बच्चे पढते है वे अपना बचाव करना स्वयं जानते हैं।कयी बार शिक्षा विभाग के आला अफ़सरान को लिखा लेकिन कान में रूई डालकर अनसुना करते हैं।विभाग की लापरवाही व उदासीनता के कारण मरम्मत व रखरखाव नही हो रहा है।शिक्षक वर्ग भी मन मसोटकर चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं उनके ऊपर भी विभाग का दबाव बना रहता है।
क्या विभाग सन 2025 तक देश का नम्बर वन राज्य का सपना संजोये सरकार इससे पहले इन विद्यालयो की मरम्मत व रखरखाव आदि करा पायेगे?
रिपोर्ट- प्रभुपाल सिंह रावत
समाज सेवी रिखणीखाल
देश में वादे तो बड़े-बड़े किए जाते हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हो पाते हैं शिक्षा को व्यापार बनाया जा रहा है लेकिन दुर्भाग्य की सबसे बड़ी बात यह है की उसमें गुणवत्ता नाम की कोई चीज नहीं शिक्षा के साथ यदि खिलवाड़ होता रहेगा तो आने वाला भविष्य किस दिशा और दशा में होगा इस पर अमल करना अत्यंत आवश्यक है और आने वाला भविष्य क्या तय करेगा यह आप देख सकते हैं वादे सिर्फ इतने होने चाहिए जिन पर अमल भी हो सके और पूर्ण भी हो सके
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