हिमालय दिवस की सार्थकता स्थानीय लोगो की सहभागिता

रिपोर्टर : वीरेंद्र नेगी 


उत्तरकाशी : सीमांत जिले के उच्च हिमालयी इलाके धराली एवं हर्षिल में समस्त उत्तराखंड में  समस्त उत्तराखंड में  पहाड़-पानी-परम्परा के प्रतीक जल मंदिर नौले धारों के संरक्षण संवर्धन को संकल्पित समुदाय आधारित संस्था नौला फाउंडेशन द्वारा स्थानीय समुदायों के साथ हिमालय दिवस

मनाया गया।  प्रख्यात पर्यावरणविद प्रताप सिंह पोखरियाल ने कहा की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए हम सभी को जिम्मेदारी लेनी होगी 'सर्वभूतेषु हिमालय'  हिमालय बसेगा, समृद्ध होगा तभी तो बचेगा, हिमालय बचेगा और बसेगा तो देश बचेगा।


विश्व में उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बाद हिमालय ही ऐसा क्षेत्र हैं जहां सर्वाधिक बर्फ विद्यमान है जो कि उच्च हिमालयी घाटियों में 15000 ग्लेसियरों में 12000 घन किलोमीटर तक विस्तारित है , इसी कारण इसे तीसरा ध्रुव भी कहते हैं।  हिमालय एवरेस्ट सहित विश्व की कुछ सर्वाधिक ऊँची चोटियों के लिए भी जाना जाता है जिनमे से करीब 50 से अधिक चोटियाँ 7200 मीटर से ऊँची हैं।  हिमालय में तो करीब छ: करोड़ लोग निवास करते हैं परन्तु इसके संसाधनों जिनमें मुख्यतः गंगा, सिन्धु, सतलुज, यमुना और ब्रह्मपुत्र तीन विशाल जलागमों में बहता जल-मिट्टी है, पर एशिया की लगभग साठ करोड़ जनसंख्या निर्भर करती है। 


उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाहर सबसे अधिक हिम का संरक्षण करने वाले पर्वतराज हिमालय से निकलती हजारों हिमनद और सैकड़ों नदियाँ भारत वर्ष के करोड़ों लोगों के जीवन को सुनिश्चित करती हैं।  जब दुनिया के देशों में पर्वतों, नदियों और वनों के संरक्षण के नैसर्गिक अधिकार हो सकते हैं तो पर्वत राज हिमालय को स्थानिक पर्यावरण-पारिस्थितिकी, वातावरण-जलवायु और भूगोल के हिसाब से अनुकूल और मानव संवेदी दीर्घकालिक नीतियो के अधिकार क्यों नहीं मिल सकते? जब हिमालय का अस्तित्व इसकी जीवन्तता, विविधता और नैसर्गिकता पर आधारित है, तब इन्हें और समृद्ध बनाना हमारा सामूहिक दायित्व क्यों नहीं हो सकता है ?  


हिमालय दिवस के शुअवसर पर हिमालयी क्षेत्र की विसंगीत पारिस्थितिकी की वजहों के हल तलाशें और ऐसे विकास को तरजीह दें जिससे आत्म निर्भर हिमालय की बुनियाद मजबूत हो और हम संकल्पित होकर उसे व्यापक बनाने की दिशा में सार्थक पहल करें। यही नहीं इन जलागमों में सघन खेती और प्रचुर जैव विविधता, पर्यावरण के लिए कामधेनु का काम करती हैं. हिमालय ना होता तो भारतीय मानसून ना होता और दक्षिण एशिया का अधिकाँश भाग सहारा मरुस्थल की तरह वीरान होता, अतः इस दृष्टि से सम्पूर्ण दक्षिण एशिया का जीवनदाता है. 


हिमालयन विद्वानों का मत है कि भारतीय भूभाग में जिस अनूठी मानव सस्न्कृति का विकास हुआ, उसके विकसित होते रहने में हिमालय का बहुत बड़ा योगदान है।   हिमालय के कारण भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में बहने वाली अधिकाँश नदियाँ सदा नीरा हैं और यह जैव विविधता की प्रचुरता तथा सघन कृषि वाला क्षेत्र है।  अटल माना जाने वाला हिमालय बहुत संवेदनशील व नया हैं  इसी कारण यहाँ भूगर्भीय हलचलें होती रहती हैं और लगातार छोटे बड़े भूकंप आते रहते हैं ।  भूकम्पों के अलावा भूस्खलन, हिमालय की नदियों में आने वाली अचानक बाढें, अतिब्रिष्टि जनित आपदाएं, वनाग्नि और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं हिमालय क्षेत्र को विश्व के चंद सर्वाधिक प्राकृतिक आपदाओं वाले क्षेत्रों में शुमार करती है।  हिमालय को भूकंप विज्ञानी ‘मध्य भूकंपीय नीरवता’ याने कि ‘सेन्ट्रल सिस्मिक गैप वाला क्षेत्र मानते हैं। 


जलवायु परिवर्तन के कारण  हिमालय का तापमान लगातार बढ़ रहा है, इसका सीधा मतलब है कि हिमालय के ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना इसका सीधा सम्बन्ध यहाँ से निकलने वाली सदानीरा नदियों के अस्तित्व पर तो तत्काल पडेगा ही. प्रतिष्ठित विज्ञान शोध पत्रिका “नेचर जियोसाइंस” के ताजा अंक में प्रकाशित एक शोध के अनुसार मौसम परिवर्तन के कारण हिमालय में बन चुके अथवा बन रहे लगभग पांच सौ से अधिक जल विद्युत् परियोजनाओं के भविष्य पर गंभीर संकट पैदा तो हुआ ही है साथ ही इन परियोजनाओं के कारण नदी घाटियों में निवास करने वाले करोड़ों लोगों की जिंदगी पर भी बड़ा संकट पैदा हो गया है।  


हिमालय सरंक्षण हेतु स्थानीय समुदायों की सहभागिता बढ़ानी होगी । नौला फाउंडेशन भी सामुदायिक प्रबंधित प्राकृतिक खेती कार्यक्रम से अपने अनुभवों से ग्रामीण आजीविका संवर्धन के साथ नेचुरल फार्मिंग पर जोर रहा हैं जिससे पहाड़ो की उपजाऊ मिट्टी की उर्वरता, इसकी जल धारण क्षमता को कैसे बढ़ाया और जल संरक्षण में मदद हो, तभी हम नेचुरल जल स्रोतों को सरंक्षित रख पाएंगे।  हम भी मानते हैं की "गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, यह भारत की ऐतिहासिक और सभ्यता की यात्रा को अपने साथ समेटे हुए हैं।  उत्तराखंड राज्य में सतत जल प्रबंधन के साथ सतत आजीवका प्रबंधन हेतु 


आत्मनिर्भर_हिमालय को संकल्पित हैं जिसका उद्देशय योजना हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा देने के साथ सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित करने और लोगों की भागीदारी की आवश्यकता पर जोर देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा  है।  स्थानीय आबादी की भागीदारी के साथ स्थानीय नदियों और जल निकायों के समग्र प्रबंधन पर सामुदायिक वार्ता जैसी गतिविधियों की एक श्रृंखला, जल प्रबंधन कार्यशाला, शून्य बजट कृषि प्रचार, क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम, वनीकरण गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा। सामुदायिक भागीदारी के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण जहां गंगा एवं सहायक नदियों के शाश्वत चरित्र को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिक संरक्षण और आर्थिक विकास साथ-साथ चलेंगे और वोकल फॉर लोकल के सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांत के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए सस्टेनेबल इको टूरिज्म को बढ़ावा देना होगा । 


कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रताप सिंह पोखरियाल पर्यावरण प्रेमी, विशिष्ट अतिथि संजय पंवार, मानवेन्द्र रावत, महेंद्र बिष्ट, डॉ शम्भू नौटियाल, सुमित बनेशी, हरीश, दुर्गेश, सुमित, सतेन्द्र पंवार, विनीत सेमवाल,  रेखा, मंगला, प्रमोद, लोकेन्द्र आदि उपस्थित थे।

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