पुनर्वास निदेशालय और THDC गैर संवैधानिक तरीके से टिहरी बांध के आशिंक डूब क्षेत्र के प्रभावितों के विस्थापन का कार्य राजनैतिक दबाव में आधे अधूरे मन से कर रहे : शांति भट्ट

Team uklive




  टिहरी : जैसा कि सर्वविदित है, कि टिहरी बांध/कोटेश्वर बांध निर्माण से क्रमश:42वर्ग किलोमीटर और 29वर्ग किमी(11वर्ग मील) झील के निर्माण से आशिंक डूब क्षेत्र के ग्रामों को अनेकों नुकसान हो रहा है,(जैसे: भूमि,भवनो में भारी दरारे जमीन, मकान जमीदोज हो रहे आदि) सरकार/पुनर्वास निदेशालय/THDC ठीक प्रकार से न्यायोचित तरीके से पुनर्वासित नही कर पा रही है।

  एडवोकेट एवं प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य शांति भट्ट ने कहा कि  यह स्थापित कानून है, (established law) , कि यदि किसी प्रकरण पर राज्य और केन्द्र अलग अलग कानून बनाती है, तो केंद्रीय कानून ही लागू होता है (umbrella law) ठीक इसी प्रकार से टिहरी बांध निर्माण और कोटेश्वर बांध निर्माण से प्रभावित ग्रामों/परिवारो के लिए समय समय

पर अलग अलग नीतियां बनाई गई:

 पुनर्वास नीति वर्ष 1985(सिंचाई विभाग द्वारा),  पुनर्वास नीति वर्ष 1989(टीएचडीसी द्वारा),  पुनर्वास नीति वर्ष, 1995(टीएचडीसी द्वारा कुछ संसोधनो सहित ), हनुमंत  राव कमेटी एवम इंटर मिनिस्ट्रियल कमेटी की रिपोर्ट वर्ष 9दिसंबर 1998 की संस्तुति,  समपार्श्विक क्षतिपूर्ति नीति (collateral damages policy) Notification 14 Jan 2013

उक्त सभी नीतियों में स्पष्ट रूप से यह समरूपता है, कि" हर पूर्ण डूब क्षेत्र के परिवार को कृषि एवम आवासीय भूखंड आवंटित किए जाएंगे, ऐसे ग्राम जो 75%डूब में है, उनके शेष 25%परिवारों को पूर्ण डूब में मान लिया जायेगा "

    उन्होंने कहा कि  सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2003 में एन डी जयाल बनाम भारत संघ के केश में कहा कि:   [Writ petition No 295 OF 1992 , Order dated 01September 2003]

"पैरा 60.Rehabilitation is not only about providing just food clothes or shelter.it is also extending support livelihood by ensuring necessary amenities of life. Rehabilitation of tha oustees is a logical corollary of Article 21.The oustees should be in a better position to lead a decert life and earn livelihood in the Rehabilitation.thus obsered this court in NARMADA BACHAO ANDOLAN case. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास, पर्यावरण, फ्लोरा फोना, सुरक्षा आदि पर व्यापक आदेश दिया था। किन्तु वर्ष 2004में 



टिहरी बांध की अन्तिम सुरंग T 2 को बन्द करने की तैयारी हो चुकी थीं, तब टिहरी के तत्कालीन विधायक और हम सभी याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय नैनीताल में यह याचिका की थी कि अंतिम सुरंग को तब तक बन्द न किया जाय जब तक पुनर्वास और अन्य जनहित की समस्याओं(जैसे आवागमन के साधन पुलो, रोपवे, सड़कों, पेयजल, अस्पताल, विस्थापन आदि) का समाधान नहीं हो  जाता [ writ petition no 885/2005 shanti Prasad Bhatt and another versus union of India and another] किंतु कई बार के स्थगन के बाद 29अक्तूबर 2005को अंतिम सुरंग को बंद कर दिया गया, हमने विरोध किया तो हमें गिरफ्तार कर लिया गया था। इस आदेश से छुब्द होकर हमने उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, SLP ( Civil)22894/2005 [kishore Upadhyaya and another versus union of India and another]

       वर्ष 2005से वर्ष 2014तक टिहरी बांध विस्थापितों के लिए संघर्षरत याचिका में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 51आदेश पारित किए [याचिका संख्या SLP (Civil) 22894/2005एवम 22895/2005 

   ND jayal versus union of India

    Kishore Upadhyaya and another

(Shanti pd bhatt,jot Singh Bisht, Mahipal negi,darshni rawat) versus union of India and another , इन आदेशों में जहां डोबरा चांटी, चिनियालीसौड, घोंटी पुलो के निर्माण के आदेश है, वहीं पंपिंग योजनाओ सहित ग्रामीण बाजारों के व्यापारियों को विस्थांपन, प्रतिकर भुगतान के आदेश है,

   इन आदेशों में सबसे खास बात यह है कि  सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त वर्णित पुनर्वास नीतियो को सही पाया,और RL 835 से ऊपर के लिए नई संपार्श्विक क्षतिपूर्ति नीति (collateral damages pollcy2013)को मंजूरी भी दी थीऔर तभी से आरएल 835मीटर से ऊपर ढालों पर बसे ग्रामों के विस्थापन्न की बात शुरू हुई। 

इन्ही आदेशों में कोर्ट ने नई टिहरी में एक शिकायत निवारण प्रकोष्ट( ग्रेवांश सैल) को स्थापित करने का आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय को दिया था, जो स्थापित भी हुआ लेकिन बिना किसी आदेश के बंद भी कर दिया? जबकि अभी तक लोगों की शिकायते वहा लंबित है? और सालो से बन्द पड़े इस प्रकोष्ठ में धूल फॉक रही है!



     उन्होंने आगे बताया कि अब प्रश्न यह है कि  सरकार और THDC द्वारा समय समय पर  सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथ पत्रों के विरूद्ध कोई काम कर सकते है?

    अगर इन सभी नीतियों के आलोक में न भी जाएं तो केंद्रीय कानून "THE NATIONAL REHABILITATION AND RESETTLEMENT POLICY 2007("राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति 2007) सर्वोच्च है ,और यही UMBRELLA Law है, जो सभी नीतियों को ओवर रूल करते हुए स्पष्ट रूप से कहती है कि "किसी भी राष्ट्रीय परियोजना के लिए यदि काश्तकारो की भूमि ली जाती है, तो उसमे रिक्वेरिंग बॉडी का निर्णय लेने में कोई रोल नहीं होगा, संबंधित सरकार निर्णय लेगी, अर्थात टिहरी बांध केश में ऐसे समझा जा सकता है, कि पुनर्वास में भूमि आवंटन का निर्णय सरकार लेगी और धनराशि टीएचडीसी देगी, लेकिन दुखद पहलू यह है, कि सरकार और टीएचडीसी का घालमेल हो गया है, जो जनता का आरोप है, इसलिए प्रभावित ग्रामीण अलग पार्टी बन कर संघर्ष कर रहे है 

     यदि सरकार,THDC इस umbrella कानून को भी नही मानती है, पुरानी अपनी बनाई नीतियों को भी नही मानती है

तो वर्तमान की संपार्श्विक नीति2013 के तहत भी भूमि के बदले भूमी देने का प्राविधान है, अन्य प्राविधान भी है, एक उच्च समिति(standing committee) भी है जिसमे मा.विधायकगण भी है,

Standing committee के निम्न सदस्य है:

1:Representative Geological survcy of India

2: Representative of Chif conservator of Forest uttarakhand

3: Representative of Central soil and water conservation Research and Traning Institute

4: Representative of Geological and Mining department

5: Representative of Survey of India

6: Representative of IIT Roorkee

7: Representative of Uttarakhand Space Application center

8: Representative of Director Rehblitation

9: Representative of THDCIl

10:Hon'ble MLA of concerned area

   लेकिन हर शाख पर उल्लू बैठा,,,,, इस नीति को कब? किसने? और क्यों बदला?कब बदला?

क्या यह  सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना नहीं है?

क्या निर्वाचित विधायको और सरकार कीthdc से कोई सांठ गांठ है?

यदि नहीं तो सत्ता पक्ष के विधायक मौन क्यों है?

प्रभावितो के लिए नही तो अपने अधिकारों के लिए तो बोलिए कि उन्हें कमेटी से बहार क्यों किया गया?

नई टिहरी में सुप्रीम कोर्ट के आदेेश से हाईकोर्ट ने जो शिकायत निवारण प्रकोष्ठ गठित किया था, वह किसके आदेश से बंद किया गया? जबकि अभी भी ग्रामीणों की शिकायते यहां लंबित है। 


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