संस्कृत के प्रचार प्रसार एवं सम्वर्द्धन के लिए संस्कारौं की वैशिष्ट्यता एवं वर्तमान परिपेक्ष में प्रासंगिकता पर सगोष्ठी का आयोजन
ज्योति डोभाल
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा सम्पूर्ण उत्तराखंड के प्रत्येक जनपद में संस्कृत के प्रचार प्रसार एवं सम्वर्द्धन के लिए संस्कारौं की वैशिष्ट्यता एवं वर्तमान परिपेक्ष में प्रासंगिकता विषय पर आनलाइन संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है इसी क्रम में टिहरी जनपद में आज आनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके मुख्य अतिथि डॉ प्रमोद उनियाल ने वर्तमान में संस्कारों की उपादेयता को बताते हुए कहा कि अष्टका-पार्वण एवं श्राद्ध यज्ञ को वर्तमान पीढ़ी के नवयुवक भूल गए हैं अपनी संस्कृति को तभी बचाया जा सकता है जब हम अपने संस्कारों को जानेंगे। इस विषय पर मुख्य वक्ता प्रो रामानुज उपाध्याय जी ने कहा कि मनुष्य को षोडश संस्कार के साथ साथ गौतम ऋषि द्वारा लिखित 48 संस्कारों का भी ज्ञान अति आवश्यक है संगोष्ठी के अध्यक्ष पद विराजमान प्रो वेद प्रकाश उपाध्याय जी ने कहा कि अष्टका-पार्वण श्राद्ध यज्ञ भारतीय संस्कृति के मुल में है देवप्रयाग संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के वेद विभाग के प्रो शैलेन्द्र उनियाल जी ने शिखा के विषय में बताया कि शिखा का महत्व भारतीय संस्कृति में क्षीण होता जा रहा है ।डाकपत्थर से डॉ मनोरथ प्रसाद नौगांई जी ने वर्तमान में संस्कारों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला । संगोष्ठी का सफल आयोजन डॉ विवेकानंद भट्ट असिस्टेंट प्रोफेसर राजकीय महाविद्यालय पोखरी क्वीली टिहरी गढ़वाल एवं डॉ श्रीओम शर्मा जी असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग द्वारा किया गया। कार्यक्रम में विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के विद्वानजन उपस्थित रहे।
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