प्रवेश द्वार नजर आते ही जीवंत हो गई वृक्ष मानव की यादें
जब भी आप चंबा से मसूरी जाएं तो कद्दूखाल से 01 किलोमीटर पहले रायपुर (देहरादून)सड़क निकलती है। और एक प्रवेश द्वार अपनी ओर आकर्षित करता है। "स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वृक्षमानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी स्मृति द्वार और मोटर मार्ग"। यह प्रवेश द्वार गौरव का प्रतीक है। सकलाना का प्रवेश द्वार जो कि 90 किलोमीटर लम्बी सड़क के दोनों ओर कद्दूखाल और कुमाल्डा में बने हुए हैं। याद दिलाते हैं उस महामानव की जिसने पचास लाख से अधिक बांज के पेड़ों का रोपण, संरक्षण किया।
अपनी 05 किलो की गैंती(कुदाल)उठाकर अथक परिश्रम के बलबूते एक हरित जंगल का विकास किया। यह 05 किलो की गैंती स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी की कलम थी। जिसके प्रयोग से उन्होंने अनेक प्रजातियों के वृक्षों को रोपण ही नहीं किया बल्कि उनकी परवरिश भी की और क्षेत्र को दिया एक विशाल हरित जंगल जो एक अनुकरणीय मिसाल है।
वन महोत्सव, हरेला दिवस, वृक्षारोपण कार्यक्रम, वन विभाग की गतिविधियां और क्रियाकलाप, स्कूली बच्चों के कार्यक्रम, ईको क्लब, हरित सेना और न जाने कितने एनजीओ वनों की सुरक्षा के लिए प्रयासरत हैं लेकिन एक अकेले तपस्वी का इतना बड़ा कार्य किया जो शायद ही कुछ गिने -चुने लोगों ने किया होगा। मेरे संज्ञान में तो वृक्ष मानव अकेला व्यक्ति है, जिसने 50 लाख से भी ज्यादा वृक्षों का जंगल तैयार करके विश्व को समर्पित किया। यदि वृक्षों की गिनती की जाए तो करोड़ वृक्ष इस जंगल में होंगे और वह राष्ट्रीय वृक्ष बांज, राज्य वृक्ष बुरांश के अलावा हजारों प्रजाति के पेड़ -पौधे इस जंगल में हैॅ। इस जंगल से प्रेरणा देकर पूरे सकलाना क्षेत्र में अनेक वन क्षेत्रों का विकास हुआ जो सकलाना की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं।
सुरकंडा पर्वत और उसकी उपत्यिकाओं से प्रवाहित जल धाराएं, इन जंगलों से निसृत होकर देहरादून की प्यास बुझाती है। यदि सकलाना क्षेत्र में 80 के दशक में अनियोजित खनन ना हुआ होता, तो सॉन्ग नदी अपना रौद्र रूप न दिखाती जो कि लोवर सकलाना के लिए कभी-कभी अभिशाप बन जाती है।
स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी जन क्रांति के नायक नागेंद्र सकलानी के छोटे भाई थे पूरा जीवन उन्होंने पर्यावरण के लिए समर्पित किया। भले ही वे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थे लेकिन त्याग और तपस्या के रूप में वृक्षमानव के रूप में उनकी जो पहचान थी उसका कोई विकल्प नही।
मेरा बचपन से ही स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी जी से प्रगाढ़ संबंध रहा है। उन्होंने केवल सकलाना क्षेत्र में ही नहीं बल्कि 80 के दशक में अन्य वन क्षेत्र को बचाने के लिए भी योगदान दिया और पर्यावरण संरक्षण के अनेक आंदोलनों में भी शिरकत की। वह केवल सैद्धांतिक व्यक्ति नहीं थे। जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले व्यक्ति थे और उनकी आत्मा को तभी तृप्ति और शांति मिलती थी जब प्रतिदिन वह अपने 05 किलो की कलम(कुदाल)के साथ अपने स्मृतिवन में कुछ नए वृक्ष लगा लेते थे। साथ ही पुराने पेड़ों की देखभाल करते थे।
वृक्ष मानव स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने अनेक बार वन विभाग और स्थानीय जनता के अपेक्षित सहयोग के बजाय विरोध सहन किया लेकिन वह अपने मिशन में लगे रहे और नैसर्गिक रूप से निस्वार्थ भावना से उन्होंने वह कर दिखाया जो कि आने वाली पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणास्पद रहेगा। सकलाना घाटी की लाइफलाइन सॉन्ग नदी और 'कद्दूखाल- कुमाल्डा मोटर मार्ग'( जिसका नाम स्वर्गीय विश्वेश्वर सकलानी के नाम पर किया गया है) यह तमाम सकलाना के पुरोधाओं को भी जीवंत कर देता है, जिनके प्रयासों के कारण सकलाना का सदैव मान और सम्मान रहा।
स्मृति द्वार की एक झलक देखने पर ही उस महामानव का जीवन वृत्त आंखों के सामने आ जाता है जो कि एक नेचर के कवि भी थे। भले ही उनको भाषा का अच्छा ज्ञान ना रहा हो, लेकिन भाव पक्ष इतना प्रबल था कि आज भी क्षेत्रीय लोगों के अलावा विश्वविद्यालय में भी उनकी कविताएं गुनगुनायी जाती हैं। विभिन्न कार्यक्रमों में जब तक कोई भी पर्यावरण प्रेमी, प्रकृति प्रेमी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी या जनप्रतिनिधि, सामाजिक सरोकारों से वास्ता रखने वाले लोग, उनका नामोउल्लेख नहीं कर देते,अपने को अधूरा पाते हैं। एक बार वृक्ष मानव स्व. विश्वेश्वर दत्त सकलानी जी को शत-शत सादर नमन।
(साभार : कवि कुटीर)
सुमन कालोनी चंबा,टिहरी गढ़वाल।
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